राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा –
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है. राम मंदिर बेहद भव्य हो, इसकी सारी कोशिशें की गईं, चाहे इसमें मकराना का संगमरमर हो…या फिर नक्काशी के लिए इस्तेमाल खास कर्नाटकी बलुआ. लेकिन इन सारी चीजों के बीच जानने की बात ये है कि मंदिर नागर स्थापत्य की स्टाइल में बना है.
राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति के लिए इस्तेमाल किया गया काला पत्थर कर्नाटक से आया है। हिमालय की तलहटी से, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा ने जटिल नक्काशीदार लकड़ी के दरवाजे और हस्तनिर्मित कपड़े पेश किए हैं,
जो दिव्य क्षेत्र के प्रवेश द्वार के रूप में खड़े हैं।
राम राम मंदिर के लिए नागर शैली को लिया गया क्योंकि उत्तर भारत और नदियों से सटे हुए इलाकों में यही शैली प्रचलित है. इस वास्तुकला की अपनी खासियतें हैं.
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में नागर शैली का चयन एक महत्वपूर्ण और समर्थनीय निर्णय है। यह शैली एक विशेष शैली है
जो भारतीय स्थापत्यकला में अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है।
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नागर शैली की विशेषता उसके शिखर और शिलालेखों में दिखाई देती है, जो इसे अन्य शैलियों से अलग बनाती है।
इसमें उच्च शिखरों, खंडहरित विग्रहों, और सुंदर शिलालेखों का समृद्धि अद्वितीयता को बढ़ाता है।
राम मंदिर के निर्माण में नागर शैली का चयन उसकी सांस्कृतिक महत्वपूर्णता और रामायण के ऐतिहासिक महत्व के साथ मेल खाता है।
यह नहीं केवल मंदिर के आकार में बल्कि उसकी आत्मा में भी एक विशेष भावना को प्रकट करता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अयोध्या के जिस मंदिर में आज श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, वो नागर शैली में बना हुआ है. प्राचीन भारत में मंदिर निर्माण की खास 3 शैलियों में से एक नागर स्थापत्य में मंदिर काफी खुला हुआ होता है, जबकि मुख्य भवन चबूतरे पर बना होता है.
अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का अवसर भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में एक ऐतिहासिक और गहरा महत्वपूर्ण क्षण है।
इस पवित्र कार्यक्रम में अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के भीतर दिव्य उपस्थिति की प्रतिष्ठा और स्थापना शामिल है। भक्त, गणमान्य व्यक्ति और आध्यात्मिक नेता मंदिर में जीवन शक्ति के औपचारिक संचार को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं, इस प्रक्रिया को प्राण प्रतिष्ठा के रूप में जाना जाता है।
श्रद्धेय हस्तियों के नेतृत्व में और बड़ी संख्या में उपासकों की उपस्थिति में…..
क्यों राम मंदिर के लिए नागर शैली को चुना गया –
राम मंदिर के लिए नागर शैली को लिया गया क्योंकि उत्तर भारत और नदियों से सटे हुए इलाकों में यही शैली प्रचलित है. इस वास्तुकला की अपनी खासियतें हैं.
देश में मंदिर बनाने की तीन शैलियां प्रमुख थीं, इसमें नागर, द्रविड़ और वेसर हैं. 5वीं सदी के उत्तर भारत में मंदिरों पर ये प्रयोग होने लगा.
इसी दौरान साउथ में द्रविड़ शैली विकसित हो चुकी थी. नागर शैली में मंदिर बनाते हुए कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे इसमें मुख्य इमारत ऊंची जगह पर बनी होती है, जैसे कोई चबूतरानुमा स्थान. इसपर ही गर्भगृह होता है, जहां मंदिर के मुख्य देवी या देवता की पूजा होती है.
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा गर्भगृह में ही हो रही है. इसी के ऊपर शिखर होता है. दोनों ही जगहें काफी पवित्र और मुख्य मानी जाती हैं.
नागर शैली उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। ‘नागर’ शब्द की उत्पत्ति नगर से हुई हैं
. खजुराहो के मन्दिर नागर शैली में निर्मित हैं।
. इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं।
. नागर शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक है। परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गयी है।
. नागर शैली के मंदिरों में योजना तथा ऊॅंचाई को मापदंड रखा गया है।
. इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है। यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये।