भारत के इतिहास में दो ऐसे काले अध्याय हैं जिन्हें भुलाना मुश्किल है—IC-814 विमान अपहरण और 26/11 मुंबई आतंकवादी हमला। इन दोनों घटनाओं में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जानें गईं और देश को एक गहरा घाव मिला। लेकिन इन दोनों घटनाओं में एक चीज़ कॉमन है, जिसे अक्सर हमारा सिनेमा और मुख्यधारा के मीडिया द्वारा नजरअंदाज किया जाता है—आतंकवादियों की मजहबी विचारधारा।
IC-814 विमान अपहरण: मजहबी कट्टरता का चेहरा
24 दिसंबर 1999 को, इंडियन एयरलाइंस के IC-814 विमान का अपहरण कर लिया गया था। अपहरणकर्ताओं का उद्देश्य था उनके साथियों की रिहाई, जो पहले से ही जेल में बंद थे। ये आतंकवादी जैश-ए-मोहम्मद और हरकत-उल-मुजाहिदीन जैसे इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों से जुड़े थे। इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य था इस्लामिक शासन की स्थापना और गैर-मुस्लिमों के खिलाफ जिहाद।
आतंकियों की इस कट्टरपंथी विचारधारा का जिक्र हमारे सिनेमा में शायद ही कभी किया गया हो। फिल्में अक्सर इस घटना को केवल एक आतंकवादी हमला दिखाती हैं, लेकिन इसके पीछे की मजहबी प्रेरणा को उजागर करने से बचती हैं।
26/11 मुंबई हमला: मजहब के नाम पर की गई हिंसा
26 नवंबर 2008 को, लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने मुंबई में कई जगहों पर हमला किया, जिसमें 166 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। इन आतंकियों की ट्रेनिंग और ब्रेनवॉशिंग पाकिस्तान में मजहबी कट्टरपंथी मदरसों और संगठनों द्वारा की गई थी। उनके मकसद में भारत के खिलाफ जिहाद और गैर-मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा शामिल थी।
मुंबई हमले पर आधारित कई फिल्में और डॉक्यूमेंट्रीज़ बनी हैं, लेकिन उनमें आतंकियों की मजहबी प्रेरणा पर शायद ही कोई चर्चा होती है। इसे एक आतंकवादी घटना के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन इसके पीछे की मजहबी विचारधारा और इसके खतरों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
सिनेमा की जिम्मेदारी
हमारा सिनेमा समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लोगों के विचारों और धारणाओं को प्रभावित करता है। ऐसे में सिनेमा की जिम्मेदारी बनती है कि वह आतंकवाद के पीछे की सच्चाई को उजागर करे, चाहे वह किसी भी रूप में हो। सच्चाई को छिपाने से या अधूरी जानकारी देने से हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कमजोर हो जाते हैं।
आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की जरूरत
आतंकवाद किसी एक मजहब, समुदाय या देश का दुश्मन नहीं है। यह पूरी मानवता के खिलाफ एक चुनौती है। इसलिए हमें सच्चाई को समझना और उसे स्वीकार करना होगा। केवल तभी हम आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत और एकजुट मोर्चा बना सकते हैं।
निष्कर्ष
IC-814 और 26/11 मुंबई हमले जैसे घटनाएं हमें याद दिलाती हैं कि आतंकवाद के पीछे की मजहबी सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमें इसे समझना और इसके खिलाफ एकजुट होना होगा। सिनेमा, मीडिया, और समाज के अन्य सभी वर्गों को इस सच्चाई को उजागर करना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके और एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना हो सके।
इस ब्लॉग के माध्यम से आतंकवाद के पीछे की मजहबी प्रेरणा और सिनेमा की जिम्मेदारी पर विचार किया गया है। आइए, हम सभी मिलकर सच्चाई का सामना करें और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हों।