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निर्भया, दिशा और अब अपराजिता: कानून बदला, लेकिन मानसिकता कब बदलेगी?

निर्भया, दिशा और अब अपराजिता

निर्भया, दिशा और अब अपराजिता

भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों की घटनाओं ने बार-बार देश को झकझोरा है। हर बार जब कोई जघन्य अपराध सामने आता है, समाज में आक्रोश उठता है, मीडिया में बहस होती है, और सरकार कानूनों में बदलाव करने की बात करती है। लेकिन क्या केवल कानूनों में बदलाव से इन अपराधों की रोकथाम संभव है? इसका उत्तर शायद ‘नहीं’ है।

निर्भया कांड और कानूनों में बदलाव

2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस घटना के बाद लोगों का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा और न्याय की मांग जोर पकड़ने लगी। इस जघन्य घटना के बाद सरकार ने आपराधिक कानूनों में बड़े बदलाव किए। नाबालिगों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया, और महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए त्वरित न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की गई। लेकिन क्या इन बदलावों के बाद महिलाओं की सुरक्षा में कोई सुधार हुआ?

दिशा कांड: फिर से वही दर्दनाक कहानी

2019 में हैदराबाद में हुई दिशा गैंगरेप और हत्या की घटना ने एक बार फिर से देश को शर्मसार कर दिया। इस घटना के बाद भी कानूनों में बदलाव की मांग उठी, और दिशा के नाम पर दिशा एक्ट लाया गया। इस कानून का उद्देश्य यौन अपराधों के मामलों में त्वरित कार्रवाई और सजा सुनिश्चित करना था। लेकिन इसके बावजूद भी इस तरह की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई।

अपराजिता केस: कब तक चलती रहेगी ये कड़ी?

2024 में हुए अपराजिता कांड ने यह साफ कर दिया कि कानून चाहे कितने भी सख्त क्यों न हों, अगर समाज की मानसिकता नहीं बदलती, तो ये घटनाएँ नहीं रुकेंगी। हर बार हम कानून को दोष देते हैं, लेकिन असली समस्या समाज की मानसिकता में छिपी हुई है।

समस्या की जड़: मानसिकता में बदलाव की आवश्यकता

कानून कितने भी सख्त हो जाएँ, जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकने वाले नहीं हैं। महिलाओं को सिर्फ एक वस्तु के रूप में देखने की मानसिकता को बदलने की जरूरत है। यह बदलाव शिक्षा के स्तर पर, घरों में बच्चों को दिए जाने वाले संस्कारों में और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान के भाव को बढ़ावा देने से ही संभव है।

निष्कर्ष

निर्भया, दिशा, अपराजिता—ये सिर्फ नाम नहीं हैं, बल्कि समाज के उस दर्दनाक सच की पहचान हैं, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। कानूनों में बदलाव जरूरी है, लेकिन उससे भी जरूरी है समाज की सोच में बदलाव। जब तक हम अपने मानसिकता को नहीं बदलते, तब तक यह कड़ी जारी रहेगी। हमें महिलाओं के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा, तभी समाज में वास्तविक सुधार संभव है।

देश को यह समझना होगा कि कानून बदलने से पहले, हमें अपनी सोच बदलनी होगी। तभी जाकर हम एक सुरक्षित और सम्मानजनक समाज की कल्पना कर सकते हैं।

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